360 डिग्री वाले राशि चक्र को 27 नक्षत्रों में भी विभाजित किया गया है। हर नक्षत्र 13 डिग्री 20 मिनट का होता है। हर राशि में 2 से ढाई नक्षत्र आते हैं।
कुल कितने नक्षत्र होते हैं?
वैदिक ज्योतिष में कुल 27 नक्षत्र माने गए हैं, जो निम्नलिखित हैं:
अश्विनी
भरणी
कृतिका
रोहिणी
मृगशिरा
आद्रा
पुनर्वसु
पुष्य
आश्लेषा
मघा
पूर्वा फाल्गुनी
उत्तरा फाल्गुनी
हस्त
चित्रा
स्वाति
विशाखा
अनुराधा
ज्येष्ठा
मूल
पूर्वाषाढ़ा
उत्तराषाढ़ा
श्रवण
धनिष्ठा
शतभिषा
पूर्वा भाद्रपदा
उत्तर भाद्रपदा
रेवती
नक्षत्रों की आवश्यकता क्यों?
नक्षत्र हमारे मानसिक और आंतरिक गुणों को दर्शाते हैं। यदि राशियाँ हमारे बाहरी व्यवहार और प्रकृति को दिखाती हैं, तो नक्षत्र हमारे मन, भावना, और अंदरुनी दृष्टिकोण को प्रकट करते हैं। नक्षत्र जन्म समय पर चंद्रमा की स्थिति के आधार पर तय होता है और उसी आधार पर व्यक्ति की मानसिकता, रुचि, और प्रवृत्तियाँ देखी जाती हैं।
नक्षत्र और चंद्रमा का संबंध
नक्षत्र प्रणाली पूरी तरह चंद्रमा पर आधारित है। जिस नक्षत्र में जन्म के समय चंद्रमा स्थित होता है, वही जन्म नक्षत्र कहलाता है। चंद्रमा का एक नक्षत्र से दूसरे में जाने का समय लगभग एक दिन का होता है, इसलिए यह भावनात्मक और मानसिक पहलुओं को दर्शाने में अत्यंत प्रभावी माना जाता है। चंद्रमा के नक्षत्र से ही ‘दशा’ प्रणाली की शुरुआत होती है।
दशा की शुरुआत कैसे होती है?
वैदिक ज्योतिष में विंशोत्तरी दशा प्रणाली का आधार जन्म नक्षत्र होता है। जिस ग्रह का स्वामित्व उस जन्म नक्षत्र पर होता है, उसी की दशा से जीवन की घटनाओं की गणना की जाती है। जैसे अगर जन्म नक्षत्र अश्विनी है, जो कि केतु के अधीन है, तो जीवन की दशा केतु से शुरू होगी। यह प्रणाली जीवन के प्रत्येक चरण में ग्रहों के प्रभाव को समझने का आधार बनती है।
भारतीय पंचांग और नक्षत्र
भारतीय पंचांग (कैलेंडर) नक्षत्र आधारित होता है। इसमें तिथि, नक्षत्र, योग, करण और वार के आधार पर दिन तय होते हैं। पंचांग में नक्षत्रों का स्थान महत्वपूर्ण होता है:
शुभ मुहूर्त निर्धारण में (शादी, यज्ञ आदि)
व्रत और त्योहारों की तिथि निर्धारण में
जन्म कुंडली निर्माण में
नक्षत्र और नवग्रहों का संबंध
हर नक्षत्र का एक स्वामी ग्रह होता है, जिससे यह निर्धारित होता है कि उस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति पर उस ग्रह का प्रभाव कैसा होगा। यह दशा और अंतरदशा प्रणाली में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
उदाहरण:
अश्विनी का स्वामी: केतु
रोहिणी का स्वामी: चंद्र
मृगशिरा का स्वामी: मंगल
इस तरह 27 नक्षत्र और 9 ग्रहों के आधार पर दशा प्रणाली बनाई गई है, जिसे “विंशोत्तरी दशा” कहते हैं।
नक्षत्र से हमें क्या पता चलता है?
व्यक्ति की मानसिक स्थिति और स्वभाव
जन्म के समय की ग्रह दशा और जीवन की दशाएँ
विवाह, संतान, करियर, स्वास्थ्य, यात्रा आदि के योग
शुभ-अशुभ समय का निर्धारण (मुहूर्त)
दिनचर्या और त्योहार का निर्धारण
वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
अगर हम खगोलशास्त्र की दृष्टि से देखें, तो पूरा आकाश अनगिनत तारों और तारामंडलों से भरा है, लेकिन वैदिक ज्योतिष में उन तारामंडलों को विशेष रूप से चुना गया है जिनसे ग्रहों की गति का स्पष्ट अवलोकन किया जा सकता है। यही 27 नक्षत्र हमारी गणनाओं और विश्लेषण का आधार बनते हैं।
निष्कर्ष:
नक्षत्र वैदिक ज्योतिष का मूल स्तंभ हैं। इनकी सहायता से हम न केवल व्यक्ति के व्यक्तित्व को समझ सकते हैं बल्कि जीवन की घटनाओं का पूर्वानुमान भी लगा सकते हैं। ग्रहों के साथ इनका मेल एक वैज्ञानिक और तार्किक पद्धति का निर्माण करता है जो हजारों वर्षों से उपयोग में है। भारतीय कैलेंडर और दशा प्रणाली से लेकर मुहूर्त निर्धारण तक, नक्षत्रों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।